लेखक - नरेन्द्र सिसोदिया
देखो भाई, राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था । राजीव दीक्षित के नाम को खराब ना करो ।
राजीव दीक्षित जी टेक्स सिस्टम को बदलना चाहते थे और इंकम टेक्स और बाकी टेक्स को खतम करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा था की गाँव गाँव बैंक खोल दो, गरीब से लेकर अमीर तक सारे के सारे "वीसा मास्टर कार्ड" के भरोसे हो जाओ, पूरी तरह इंटरनेट और बैंकिग के भरोसे बैठ जाओ ।
मेरे पास पूरे सबूत है भारत को नेता लोगो ने जितना बर्बाद नही किया उससे कही ज्यादा बैंकिग सिस्टम ने बर्बाद किया है । बैंकिग ना होने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकृत थी और हम सोने से व्यापार करते थे इसीलिये हमने दूसरे देश से सोना लाते थे । घर घर में किलो से सोना रहता था। सोने के मंदिर बना डाले और हमें सोने की चिडीयाँ बोलते थे । बैंकिग सिस्टम ने पूरी अर्थव्यवस्था को केन्द्रीकृत कर दिया और इकोनोमी से संबंधित सारे निर्णय कुछ १०-२० लोगो के हाथों में सिमट गया । आज पूरा देश कर्जे में डूबा है , देश को बाहर की बैंकलो के कर्जे तो देने है साथ ही अपने देश की बैंको के भी । शायद चीन को छोडकर दुनिया का आज कोई भी देश ऐसा नही है कर्जे में डूबा ना हो। आखिर दुनिया के सारे देशो को कर्ज किसने बाँटा ? इसका जवाब ये है की बैंकिग सिस्टम वैधानिक पर अलोकतंात्रिक (legal but non-democratic) तरीके से किसी को भी कर्ज दे सकता है और ये कर्ज किसी की बचत नही होती है ये कर्ज "हवा में बनाया हुआ पैसा" होता है। "हवा मे बनाया हुआ पैसा"?? जी हाँ , बैंक का सारा काम इंटरनेट पर होता है, जब किसी को कर्ज मिलता है तो वो उसके खाते में सिर्फ कुछ अंक ही तो चडाने होते है।
अर्थक्रांती टेक्स सिस्टम को बदलने का प्रयास कर रही है वो अच्छी बात है लेकिन इसके बदले वो बैंक पर हमारी निर्भरता को बडा रही है । आज बहुत से लोग है जो बिना बैंक के जी रहे है लेकिन अर्थक्रांती प्रस्ताव को पूरा लाने के बाद आप बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट के बिना चाय भी नही पी पायेंगे और ना ही सब्जी खरीद पायेंगे ।RBI भी पूरी तरह सरकार के हाथों में नही है उसकी नकेल भी फेड के हाथो में है, फेड की नकेल वैश्विक बैंकर माफीया के हाथों में है । राजीव भाई थोडा और जीते तो इन बैंकर माफीया तक भी पहुँच जाते । अर्थक्रांती प्रस्ताव इन बैंकर माफिया लोगो को इतनी शक्ति देगा की इसके लागू होने के कुछ साल बाद अगर आपने इनके खिलाफ कुछ भी बोला तो आपको चुप कराने के लिये ये लोग बस आपका खाता सील कर देंगे और आपको चाय पीना भी मुश्किल हो जायेगा।
ये कुछ वैसा ही जैसे इंटरनेट पर हजारो ब्लोग उपलब्ध है आपकी आवाज उठाने के लिये और सरकार एक दिन ये प्लादेखो भाई, राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था । राजीव दीक्षित के नाम को खराब ना करो ।
राजीव दीक्षित जी टेक्स सिस्टम को बदलना चाहते थे और इंकम टेक्स और बाकी टेक्स को खतम करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा था की गाँव गाँव बैंक खोल दो, गरीब से लेकर अमीर तक सारे के सारे "वीसा मास्टर कार्ड" के भरोसे हो जाओ, पूरी तरह इंटरनेट और बैंकिग के भरोसे बैठ जाओ ।
मेरे पास पूरे सबूत है भारत को नेता लोगो ने जितना बर्बाद नही किया उससे कही ज्यादा बैंकिग सिस्टम ने बर्बाद किया है । बैंकिग ना होने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकृत थी और हम सोने से व्यापार करते थे इसीलिये हमने दूसरे देश से सोना लाते थे । घर घर में किलो से सोना रहता था। सोने के मंदिर बना डाले और हमें सोने की चिडीयाँ बोलते थे । बैंकिग सिस्टम ने पूरी अर्थव्यवस्था को केन्द्रीकृत कर दिया और इकोनोमी से संबंधित सारे निर्णय कुछ १०-२० लोगो के हाथों में सिमट गया । आज पूरा देश कर्जे में डूबा है , देश को बाहर की बैंकलो के कर्जे तो देने है साथ ही अपने देश की बैंको के भी । शायद चीन को छोडकर दुनिया का आज कोई भी देश ऐसा नही है कर्जे में डूबा ना हो। आखिर दुनिया के सारे देशो को कर्ज किसने बाँटा ? इसका जवाब ये है की बैंकिग सिस्टम वैधानिक पर अलोकतंात्रिक (legal but non-democratic) तरीके से किसी को भी कर्ज दे सकता है और ये कर्ज किसी की बचत नही होती है ये कर्ज "हवा में बनाया हुआ पैसा" होता है। "हवा मे बनाया हुआ पैसा"?? जी हाँ , बैंक का सारा काम इंटरनेट पर होता है, जब किसी को कर्ज मिलता है तो वो उसके खाते में सिर्फ कुछ अंक ही तो चडाने होते है।
अर्थक्रांती टेक्स सिस्टम को बदलने का प्रयास कर रही है वो अच्छी बात है लेकिन इसके बदले वो बैंक पर हमारी निर्भरता को बडा रही है । आज बहुत से लोग है जो बिना बैंक के जी रहे है लेकिन अर्थक्रांती प्रस्ताव को पूरा लाने के बाद आप बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट के बिना चाय भी नही पी पायेंगे और ना ही सब्जी खरीद पायेंगे ।RBI भी पूरी तरह सरकार के हाथों में नही है उसकी नकेल भी फेड के हाथो में है, फेड की नकेल वैश्विक बैंकर माफीया के हाथों में है । राजीव भाई थोडा और जीते तो इन बैंकर माफीया तक भी पहुँच जाते । अर्थक्रांती प्रस्ताव इन बैंकर माफिया लोगो को इतनी शक्ति देगा की इसके लागू होने के कुछ साल बाद अगर आपने इनके खिलाफ कुछ भी बोला तो आपको चुप कराने के लिये ये लोग बस आपका खाता सील कर देंगे और आपको चाय पीना भी मुश्किल हो जायेगा।
ये कुछ वैसा ही जैसे इंटरनेट पर हजारो ब्लोग उपलब्ध है आपकी आवाज उठाने के लिये और सरकार एक दिन ये प्लान लेकर आये की फेसबुक पर ही आपको लिखना है और फेसबुक जो इस्तेमाल करेगा उसका इंटरनेट का बिल नही देना पडेगा । कुछ सालो में इंटरनेट के किसी और ब्लोग पर लिखना गुनाह हो जाता है और फेसबुक पर भारत सरकार का पूरा नियंत्रण । इसके बाद आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलते हो तो आपका अकाउंट बंद ।
और कम से कम राजीव दिक्षीत का नाम तो मत डालो अर्थक्रांती के प्रस्ताव में । राजीव जी ने समस्या बताई थी, और ये समाधान बता रहे है जो मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है । हमे थोडा और सोचने की जरूरत है ।न लेकर आये की फेसबुक पर ही आपको लिखना है और फेसबुक जो इस्तेमाल करेगा उसका इंटरनेट का बिल नही देना पडेगा । कुछ सालो में इंटरनेट के किसी और ब्लोग पर लिखना गुनाह हो जाता है और फेसबुक पर भारत सरकार का पूरा नियंत्रण । इसके बाद आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलते हो तो आपका अकाउंट बंद ।
और कम से कम राजीव दिक्षीत का नाम तो मत डालो अर्थक्रांती के प्रस्ताव में । राजीव जी ने समस्या बताई थी, और ये समाधान बता रहे है जो मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है । हमे थोडा और सोचने की जरूरत है ।
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│ नरेन्द्र सिसोदिया
│ स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│ http://narendrasisodiya.com
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देखो भाई, राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था । राजीव दीक्षित के नाम को खराब ना करो ।
राजीव दीक्षित जी टेक्स सिस्टम को बदलना चाहते थे और इंकम टेक्स और बाकी टेक्स को खतम करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा था की गाँव गाँव बैंक खोल दो, गरीब से लेकर अमीर तक सारे के सारे "वीसा मास्टर कार्ड" के भरोसे हो जाओ, पूरी तरह इंटरनेट और बैंकिग के भरोसे बैठ जाओ ।
मेरे पास पूरे सबूत है भारत को नेता लोगो ने जितना बर्बाद नही किया उससे कही ज्यादा बैंकिग सिस्टम ने बर्बाद किया है । बैंकिग ना होने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकृत थी और हम सोने से व्यापार करते थे इसीलिये हमने दूसरे देश से सोना लाते थे । घर घर में किलो से सोना रहता था। सोने के मंदिर बना डाले और हमें सोने की चिडीयाँ बोलते थे । बैंकिग सिस्टम ने पूरी अर्थव्यवस्था को केन्द्रीकृत कर दिया और इकोनोमी से संबंधित सारे निर्णय कुछ १०-२० लोगो के हाथों में सिमट गया । आज पूरा देश कर्जे में डूबा है , देश को बाहर की बैंकलो के कर्जे तो देने है साथ ही अपने देश की बैंको के भी । शायद चीन को छोडकर दुनिया का आज कोई भी देश ऐसा नही है कर्जे में डूबा ना हो। आखिर दुनिया के सारे देशो को कर्ज किसने बाँटा ? इसका जवाब ये है की बैंकिग सिस्टम वैधानिक पर अलोकतंात्रिक (legal but non-democratic) तरीके से किसी को भी कर्ज दे सकता है और ये कर्ज किसी की बचत नही होती है ये कर्ज "हवा में बनाया हुआ पैसा" होता है। "हवा मे बनाया हुआ पैसा"?? जी हाँ , बैंक का सारा काम इंटरनेट पर होता है, जब किसी को कर्ज मिलता है तो वो उसके खाते में सिर्फ कुछ अंक ही तो चडाने होते है।
अर्थक्रांती टेक्स सिस्टम को बदलने का प्रयास कर रही है वो अच्छी बात है लेकिन इसके बदले वो बैंक पर हमारी निर्भरता को बडा रही है । आज बहुत से लोग है जो बिना बैंक के जी रहे है लेकिन अर्थक्रांती प्रस्ताव को पूरा लाने के बाद आप बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट के बिना चाय भी नही पी पायेंगे और ना ही सब्जी खरीद पायेंगे ।RBI भी पूरी तरह सरकार के हाथों में नही है उसकी नकेल भी फेड के हाथो में है, फेड की नकेल वैश्विक बैंकर माफीया के हाथों में है । राजीव भाई थोडा और जीते तो इन बैंकर माफीया तक भी पहुँच जाते । अर्थक्रांती प्रस्ताव इन बैंकर माफिया लोगो को इतनी शक्ति देगा की इसके लागू होने के कुछ साल बाद अगर आपने इनके खिलाफ कुछ भी बोला तो आपको चुप कराने के लिये ये लोग बस आपका खाता सील कर देंगे और आपको चाय पीना भी मुश्किल हो जायेगा।
ये कुछ वैसा ही जैसे इंटरनेट पर हजारो ब्लोग उपलब्ध है आपकी आवाज उठाने के लिये और सरकार एक दिन ये प्लादेखो भाई, राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था । राजीव दीक्षित के नाम को खराब ना करो ।
राजीव दीक्षित जी टेक्स सिस्टम को बदलना चाहते थे और इंकम टेक्स और बाकी टेक्स को खतम करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा था की गाँव गाँव बैंक खोल दो, गरीब से लेकर अमीर तक सारे के सारे "वीसा मास्टर कार्ड" के भरोसे हो जाओ, पूरी तरह इंटरनेट और बैंकिग के भरोसे बैठ जाओ ।
मेरे पास पूरे सबूत है भारत को नेता लोगो ने जितना बर्बाद नही किया उससे कही ज्यादा बैंकिग सिस्टम ने बर्बाद किया है । बैंकिग ना होने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकृत थी और हम सोने से व्यापार करते थे इसीलिये हमने दूसरे देश से सोना लाते थे । घर घर में किलो से सोना रहता था। सोने के मंदिर बना डाले और हमें सोने की चिडीयाँ बोलते थे । बैंकिग सिस्टम ने पूरी अर्थव्यवस्था को केन्द्रीकृत कर दिया और इकोनोमी से संबंधित सारे निर्णय कुछ १०-२० लोगो के हाथों में सिमट गया । आज पूरा देश कर्जे में डूबा है , देश को बाहर की बैंकलो के कर्जे तो देने है साथ ही अपने देश की बैंको के भी । शायद चीन को छोडकर दुनिया का आज कोई भी देश ऐसा नही है कर्जे में डूबा ना हो। आखिर दुनिया के सारे देशो को कर्ज किसने बाँटा ? इसका जवाब ये है की बैंकिग सिस्टम वैधानिक पर अलोकतंात्रिक (legal but non-democratic) तरीके से किसी को भी कर्ज दे सकता है और ये कर्ज किसी की बचत नही होती है ये कर्ज "हवा में बनाया हुआ पैसा" होता है। "हवा मे बनाया हुआ पैसा"?? जी हाँ , बैंक का सारा काम इंटरनेट पर होता है, जब किसी को कर्ज मिलता है तो वो उसके खाते में सिर्फ कुछ अंक ही तो चडाने होते है।
अर्थक्रांती टेक्स सिस्टम को बदलने का प्रयास कर रही है वो अच्छी बात है लेकिन इसके बदले वो बैंक पर हमारी निर्भरता को बडा रही है । आज बहुत से लोग है जो बिना बैंक के जी रहे है लेकिन अर्थक्रांती प्रस्ताव को पूरा लाने के बाद आप बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट के बिना चाय भी नही पी पायेंगे और ना ही सब्जी खरीद पायेंगे ।RBI भी पूरी तरह सरकार के हाथों में नही है उसकी नकेल भी फेड के हाथो में है, फेड की नकेल वैश्विक बैंकर माफीया के हाथों में है । राजीव भाई थोडा और जीते तो इन बैंकर माफीया तक भी पहुँच जाते । अर्थक्रांती प्रस्ताव इन बैंकर माफिया लोगो को इतनी शक्ति देगा की इसके लागू होने के कुछ साल बाद अगर आपने इनके खिलाफ कुछ भी बोला तो आपको चुप कराने के लिये ये लोग बस आपका खाता सील कर देंगे और आपको चाय पीना भी मुश्किल हो जायेगा।
ये कुछ वैसा ही जैसे इंटरनेट पर हजारो ब्लोग उपलब्ध है आपकी आवाज उठाने के लिये और सरकार एक दिन ये प्लान लेकर आये की फेसबुक पर ही आपको लिखना है और फेसबुक जो इस्तेमाल करेगा उसका इंटरनेट का बिल नही देना पडेगा । कुछ सालो में इंटरनेट के किसी और ब्लोग पर लिखना गुनाह हो जाता है और फेसबुक पर भारत सरकार का पूरा नियंत्रण । इसके बाद आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलते हो तो आपका अकाउंट बंद ।
और कम से कम राजीव दिक्षीत का नाम तो मत डालो अर्थक्रांती के प्रस्ताव में । राजीव जी ने समस्या बताई थी, और ये समाधान बता रहे है जो मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है । हमे थोडा और सोचने की जरूरत है ।न लेकर आये की फेसबुक पर ही आपको लिखना है और फेसबुक जो इस्तेमाल करेगा उसका इंटरनेट का बिल नही देना पडेगा । कुछ सालो में इंटरनेट के किसी और ब्लोग पर लिखना गुनाह हो जाता है और फेसबुक पर भारत सरकार का पूरा नियंत्रण । इसके बाद आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलते हो तो आपका अकाउंट बंद ।
और कम से कम राजीव दिक्षीत का नाम तो मत डालो अर्थक्रांती के प्रस्ताव में । राजीव जी ने समस्या बताई थी, और ये समाधान बता रहे है जो मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है । हमे थोडा और सोचने की जरूरत है ।
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│ नरेन्द्र सिसोदिया
│ स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│ http://narendrasisodiya.com
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bhaiya aap se mae baat karna chahta hu
ReplyDeleteplz bhaiya kyoki hum pahle se hi banko ke khilaf sangthan bna rahe hai
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